हम अपने देश में मुस्लिम समाज के बंधुओंको सलाम वालेकुम Salam walekum कहते हुए सुनते है. इस सलाम वालेकुम' का मतलब क्या है? salam walekum meaning in hindi इसी तरह अस्सलाम वालेकुम as salam walekum या अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकातहू, और अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू ये शब्द कहते हुए सुने होंगे. इन्हे सुनने केबाद उन्हें समझने और उसका अर्थ जाननेकी और वह शब्द क्यों कहे जाते है यह जाननेकी ख्वाहिश जरूर हुई होगी. इस लेख में हम उसी के संबंध में आपको जानकारी दे रहे है. इस लेख को आप पूरा अंत तक पढ़िए आपको आपके मन में आनेवाले इन सावालोंका जवाब मिल जायेगा.
सलाम वालेकुम का मतलब क्या है? Salam walekum meaning in hindi
इस लेख मे हम मुस्लिम समुदाय केलोगों द्वारा आपस में कहे जानेवाले सलाम वालेकुम, अस्सलाम वालेकुम या अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकातहू और अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू इन गैर हिंदी भाषी शब्दोंके बारेमे salam walekum meaning in hindi जानेंगे. यह शब्द या वाक्य ग़ैर हिंदी ही नहीं यह भारत की किसी अन्य जबान के भी नहीं है. लेकिन भारत के मुस्लिम समुदाय के लोगोंमे इसके बोलने का चलन आम है. यह इतने जियादा बोले जाते है के जो मुस्लिम नहीं है वह भी इन्हे जानते है. और मौका ब मौका मुलिम समुदाय के लोगों के साथ बोलनेमे, बातचीत में इसका इस्तेमाल भी करते है.
अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकातहू का मतलब क्या है
दरअसल अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकातहू यह अरबी भाषा के शब्दों से बना वाक्य है. इसका सही उच्चार "अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू" as-salamu alaykum wa-raḥmatullahi wa-barakatuh ऐसा है. इसे अरबी में (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِ وَبَرَكَاتُهُ) इस तरह लिखा जाता है. इसका हम हिंदी में इस तरह अनुवाद कर सकते है, "आप पर शांति (सलामती) हो, और ईश्वर (अल्लाह) की दया और आशीर्वाद हो." 'Peace be upon you, and mercy of (God) Allah and his blessings.'
Salam walekum in hindi सलाम वालेकुम का मतलब
इसका सही उच्चार "अस्सलामुअलैकुम" जिसे अरबीमे (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ) इस तरह लिखते है. अस्सलामुअलैकुम या सलाम वालेकुम का मतलब होता है "आप पर शांति (सलामती) हो." इसे सलाम कहना कहते है. आप इसे अभिवादन भी कह सकते है. आप सिर्फ "अस्सलामुअलैकुम" कह सकते है. आप "अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही" जिसका अर्थ है "आप पर शांति (सलामती) हो, और ईश्वर (अल्लाह) की दया हो" इतना भी कह सकते है. और "अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू" ("आप पर शांति (सलामती) हो, और ईश्वर (अल्लाह) की दया और आशीर्वाद हो.") भी कह सकते है.
इसे भी पढ़ें: इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे?
सलाम क्या है?
इस्लामी शिष्टाचार में यह शिक्षा दी गई है के तुम जब एक दूसरे को मिलो तो एक दूसरे केलिए सलाम कहो. सलाम क्या है?, सलाम एक दूसरे की खैरख्वाही है. एक दूसरे केलिए दुआ है. सलाम के शब्दोपर आप गौर करेंगे तो आपको समझ आएगा के यह तो सरासर अपने भाई केलिए ईश्वरसे की गई प्रार्थना है, दुआ है. यह सलाम एक भाई के दिलमे उसके दूसरे भाई के लिए भलाई के जज्बे को परवान चढ़ाती है. उसके दिलमे खैरख्वाही का जज्बा पैदा करती है.
जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मिले तो जज्बात, अहसासात, खुशी और मसर्रत का तबादला करें. इसका वाहिद तरिका यह है कि एक दूसरे के लिए आफ़ियत और सलामती की दुआ करें एक अस्सलाम वालेकुम कहे तो दूसरा वालेकुम अस्सलाम. सलाम प्यार मोहब्बत को बढ़ाने में और आपसी तालुकात को बढ़ानेका बेहतरीन जरिया है.
सलाम वालेकुम या अस्सलाम वालेकुम का जवाब क्या देना चाहिए?
जब कोई हमें सलाम करता है तो हमें अस्सलाम वालेकुम का जवाब क्या देना चाहिए? यह प्रश्न आता है. पैगम्बर मोहम्मद साहब ने इसकी भी शिक्षा दी है. जब कोई हमें सलाम करे तो हम उसका जवाब क्या दे यह सिखाया है. कोई हमें "अस्सलामुअलैकुम" (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ) कहे तो हमें कमसे कम "wa ʿalaykumu s-salam" (وَعَلَيْكُمُ ٱلسَّلَامُ) इतना जवाब तो देना ही चाहिए. इसका अर्थ होता है "आप पर शांति (सलामती) हो." मतलब उसने जितनी आपकेलिए ईश्वर से प्रार्थना, दुआ की आप भी उसके जवाब में उसकेलिए ईश्वर (अल्लाह) से कमसे काम उतनी प्रार्थना, दुआ करें जितनी उसने आपके लिए की.
इसी प्रकार से अगर कोई आपको "अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही" (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِ ) इस तरह सलाम करता है तो आप जवाब में (وَعَلَيْكُمُ ٱلسَّلَامُ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِهِ) "wa ʿalaykumu s-salam wa rahimatullahi" कमसे कम इतना जवाब देना चाहिए. और अगर सामनेवाला शख्स "अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू" पूरा कहता है तो हमें कमसे कम जवाब में (وَعَلَيْكُمُ ٱلسَّلَامُ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِ وَبَرَكَاتُهُ) "wa ʿalaykumu s-salam wa rahimatullahi wa barakatuhu " इतना कहना चाहिए.
दिव्य कुरआन में लिखा है,
"और तुम्हें जब सलामती की कोई दुआ दी जाए, तो तुम सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो। निश्चय ही, अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है।" (कुरआन 4:86)
पैगम्बर मुहम्मद साहब ने यह शिक्षा अपने अनुयायियोंको दी के जब आपका भाई आपको सलाम करे, आप केलिए ईश्वर (अल्लाह) से प्रार्थना, दुआ करे तो आप उसकी सलाम का उससे बेहतर जवाब दो या कम से काम जितनी दुआ उसने आप केलिए की उतनी दुआ आप भी उस केलिए करो.
बेहतर का मतलब वह अगर आपको "अस्सलामुअलैकुम" (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ) कहे तो आप उसे जवाब में (وَعَلَيْكُمُ ٱلسَّلَامُ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِهِ) "wa ʿalaykumu s-salam wa rahimatullahi" कहे. वह अगर आपको "अस्सलामु अलयकुम व रहमतुल्लाही" (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِ ) कहे तो आप जवाब मे उसे (وَعَلَيْكُمُ ٱلسَّلَامُ وَرَحْمَةُ ٱللَّٰهِ وَبَرَكَاتُهُ) "wa ʿalaykumu s-salam wa rahimatullahi wa barakatuhu " कहो.
अस्सलाम वालेकुम शब्द का इतिहास History of Assalamu Alaikum
दुनिया भर में अस्सलामु अलैकुम फ़िलहाल मुसलमानों के लिए एक धार्मिक अभिवादन बन गया है. लेकिन पैगम्बर मोहम्मद साहब की नबी य पैगम्बर बनानेसे पहले अन्य धर्मो के वक्ता भी इसका पहला भाग "अस्सलामुअलैकुम" (ٱلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ) लोगोंको ग्रीट करने केलिए इस्तेमाल करते थे. जैसे कि अरब ईसाई और मिजराही यहूदी वगैरह। (सन्दर्भ wikipedia.org)
क्या कुरान में सलाम का उल्लेख है?
कुरआन की सुरह नंबर 4 में सलाम केबारे में जो शिक्षा दी गई है उसका हमने ऊपर उल्लेख किया है. एक दूसरी जगह दूसरे के घऱों में प्रवेश करने से पहले उन्हें सलाम करने और उनकी अनुमति लेने का उल्लेख है,
"ऐ ईमान लानेवालो! अपने घरों के सिवा दूसरे घऱों में प्रवेश न करो, जब तक कि रज़ामन्दी हासिल न कर लो और उन घरवालों को सलाम न कर लो। यही तुम्हारे लिए उत्तम है, कदाचित तुम ध्यान रखो।" (कुरआन 24:27)
उसके आगे की आयत मे कःकहा गया है,
"फिर यदि उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो जब तक कि तुम्हें अनुमति प्राप्त न हो। और यदि तुमसे कहा जाए कि वापस हो जाओ तो वापस हो जाओ, यही तुम्हारे लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते हो।" (कुरआन 24:27)
इसे भी पढ़ें: कुरान का लेखक कौन है?
पैगंबर मोहम्मद साहब की सलाम के बारेमे शिक्षाएं
मोहम्मद पैगंबर साहब ने हमेशा अपने साथीयोंको सलाम करनेपर उभारा. अस्सलामुअलैकुम कहने को पुन्य, सवाब और नेकी का काम बताया. इसका उनके साथियोंपर कैसा असर था इसका अनुमान आप को हम एक वाक़िया बताते है, उससे आप अंदाज़ा लगा सकते है.
स्वतंत्र भारत देश के पहले शिक्षण मंत्री और स्वतंत्रता सैनाणी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपने भाषण में सलाम का महत्व समझाते हुए मोहम्मद पैगंबर साहब के एक साथी केबारेमें बताया के जब उनसे पूछा गया के वह बाज़ार क्यों जाते है?. तो उन्होंने जवाब दिया के मै बाजार सिर्फ लोगोंको सलाम करने केलिए जाता हूँ. अर्थात ज्यादासे ज्यादा लोगोंसे मुलाकात होगी. जियादा लोगोंको सलाम करूँगा और ज्यादा पुण्य मिलेगा.
सलाम करनेपर पुण्य, नेकियां
एक मर्तबा एक सहाबी (पैगम्बर साहब के साथी को सहाबी कहते है) पैगंबर मोहम्मद साहब (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के पास आए तो कहा--
"अस्सालामु अलैकुम"
आप (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने उन को सलाम का जवाब दिया और कहा 10 *इसके बाद दुसरे सहाबी आए और कहा --
"अस्सालामु अलैकुम वा रहमतुल्लाह" आप (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने उनके सलाम का जवाब दिया और कहा 20,
*फिर तिसरे सहाबी आए और सलाम अर्ज किया --
"अस्सालामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बरकातुहु"
आप (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने उनके सलाम का जवाब दिया और कहा 30,
(सन्दर्भ:अबु दाऊद)
मतलब अपने सिर्फ "अस्सालामु अलैकुम" कहा तो आपको 10 नेकी मिलेगी. आपने "अस्सालामु अलैकुम वा रहमतुल्लाह" कहा तो आपको 20 नेकी मिलेगी और आपने "अस्सालामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बरकातुहु" कहा तो आपको 30 नेकी मिलेगी. सलाम में हर इजाफे के साथ 10 नेकीयों का इजाफा।
सलाम आपसी मोहब्बत की मास्टर की
पैगंबर मोहम्मद साहब ने आपसी मुहब्बत केलिए सलाम को जरिया बनाने केलिए कहा है. मानो जैसे सलाम आपसी मुहब्बत और भाईचारे को बढ़ाने की मास्टर की है. मोहम्मद (pbuh) साहब ने फरमाया,
"तुम उस वक्त तक जन्नत मे दाखिल नही जाओगे जब तक इमान नही लाओगे, और तुम उस वक्त तक मोमीन नही हो सकते जब तक एक दुसरे से मुहब्बत ना करो, क्या मै तुम्हे ऐसी चिज ना बताऊं के जब तुम उसे अपनालोगे तो आपस मे मुहब्बत करने लगोगे, (वह यह है की) आपस मे सलाम फैलाओ" (बुखारी )
सलाम के बारेमें कुछ अन्य शिक्षाएं
"गुजरने वाले बैठने वालो को, छोटी जमात बड़ी जमात को, और सवार पैदल चलने वालो को सलाम करे."
(बुखारी शरिफ)
`
"घर मे दाखिल होते हुए भी घर वालो को सलाम करो"
(बुखारी)
`
'जब मजलिस (सभा) से उठकर जाने लागो तो सलाम करे."
(तिर्मीजी)
इसे भी पढ़ें: रमजान क्यों मनाया जाता है
गैरमुस्लिम की सलाम का जवाब क्या देना चाहिए?
मुसलमान को कोई ऐसा व्यक्ति सलाम करे जो मुसलमान नहीं है, तो उसका क्या जवाब देना चाहिए? मतलब गैरमुस्लिम की सलाम का जवाब क्या देना चाहिए? इस के बारेमे एक बहुत बड़ी गलत फहमी है. और यह गलत फहमी दुर्भाग्य से मुसलमानो में अज्ञान की वजह से, इस्लामका सही इल्म न होने की वजह से बहुत आम है.
आमतौरपर लोग समझते है के कोई गैरमुस्लिम सलाम करे तो उसे सिर्फ "व अलैकुम" यह जवाब दे. "व अलैकुम" का अर्थ होता है आप पर भी. मतलब जो आपने मेरे लिए ईश्वरसे दुआ की वह आपकेलिए भी (ईश्वर से मांगता हूँ). मुसलमानोंको गैरमुस्लिम को इस तरह का जवाब देने का आदेश दिया गया था. लेकिन वह एक ख़ास मौके पर, एक ख़ास हालत में कुछ ख़ास लोगोंको इस तरह का जवाब देनेके लिए कहा था. इसका एक सन्दर्भ है. हम आपको बताते है.
हम जान गए है के अस्सलामुअलैकुम अरबी भाषा क शब्द है. पैगम्बर साहब ने जब मुसलमानोंको एक दूसरे को सलाम करने का आदेश दिया तो लोग एक दूसरे को सलाम करने लगे. आपस मे सलाम को फैलाने लगे, लोगोमे सलाम करने का रिवाज आम होने लगा. मुस्लिम गैर मुस्लिम सभी आपसमे एक दूसरे को सलाम करने लगे.
"व अलैकुम" का संधर्भ
हम हमारे समाज मे भी देखते है के कुछ लोग ऐसे होते जिन्हे लोगोंका आपसमे मिलजुलकर रहना अच्छा नहीं लगता. वह लोगोंमे फुट डलने का काम करते है. उस समाज में भी कुछ ऐसे लोग थे जिन्हे इस से तकलीफ होने लगी. वह अरबी भाषिक थे, अरबी जानते थे. वह जानबूझकर स्सलामुअलैकुम का उच्चार बिगाड़कर ऐसा उच्चार करते थे के इंसान अगर ध्यान देकर न सुने तो सुननेमे अस्सलामुअलैकुम ही लगता था.
लेकिन हकीकत में उसका मतलब दुआ न होकर बाद दुआ होता था. उसका मतलब होता था के "तुम हलाक होजाओ." जो लोग इस तरह की हरकत करतेथे उनकी इस चाल को विफल करने केलिए मुसलमानो को कहा गया केजो ऐसे लोग है. जो इस तरह सलाम के उच्चार को बिगाड़कर सलाम करते है उन्हें सलाम का जवाब "व अलैकुम" कह कर दो. अर्थात तूने जो हमारे लिए ईश्वर (अल्लाह) से माँगा है वही तेरे लिए भी हो.
यह इसका सन्दर्भ है. इसी से यह गलत फहमी हुई है. यह आदेश आम नही था खास था. आज भी कोई उन अरबो की तरह बिगाड़कर उच्चार करेगा उसे "व अलैकुम" ही जवाब दिया जाएगा. लेकिन जो आम गैरमुस्लिम है, उसे सलाम का जवाब जो जवाब मुस्लिम को दिया जाता है वही दिया जायेगा. लेकिन दुर्भाग्य से कुछ मुसलमान सही जानकारी न होनेकी वजह से ऐसा समझते है के सभी गैरमुस्लिम को "व अलैकुम" जवाब देना चाहिए. यह बात सही नहीं है गलत है.
इसे भी पढ़ें: मोहम्मद साहब का फोटो बनाना क्यों मना है
असालमुअलै कुम कहने के फायदे Salam karne ke fayde
हमने ऊपर अस्सलामु अलैकुम का मतलब क्या होता है वह समझा है. हम इसपर गौर करे तो हमें समझमें आता है के अगर आप किसी को सलाम करते है अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु कहते है या किसी के सलाम का जवाब देते हुए व अलैकुमुस्सलाम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु कहते हैं तो आप उस शख्स के हक में तीन बड़ी चीजों की दुआ करते हैं.
पहली चीज़ अमन, सुकून, शांति, सलामती, पीस जिसकी हर किसी को ज़रूरत है. नंबर दो रहमत, अल्लाह की मर्जी, अल्लाह का करम इसकी भी हर किसी को जरूरत है. बिना इसके किसी का भला नहीं होने वाला है. नंबर तीन बरकत, हम सभी चाहते हमारी जिंदगी में बरकत आए, हमारी उम्र में बरकत आए, हमारी रोजी में बरकत है हमारे घर बार में बरकत आये, हमारी दोलत में बरकत आए, हर कोई इसकी तलाश मे है. हर कोई इसको तलाश करता हैं.
कितना प्यारा नुस्खा पैगंबर मोहम्मद साहबने, इस्लामी शिक्षाओंने हमें और आपको दिया है कि हम जब एक दूसरे से आपस में मिले तो सलाम कर लिया करें और अगर कोई हमें सलाम करे तो जवाब दे दिया करें।अब आप गौर करें अगर आप सलाम करते हैं और पूरा सलाम कहते हैं अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह बरकातहू कहते है तो ईश्वर (अल्लाह) की तरफ से आपको 30 नेकिया मिलती है.
यह तो एक जाहिरी चीज़ है लेकिन आपको जो छुपी हुई, न दिखनेवाली चीज़ मिलती है, जो इससे भी बड़ी चीज जो हमें मिलती है वह ईश्वर (अल्लाह) की शांति, अमन व सुकून मिलता है ईश्वर (अल्लाह) की रहमत हमें मिलती है और ईश्वर (अल्लाह) की बरकते आपके आप के घर में, आपके रोज़ी में, और आपके ज़िंदगीमे दाखिल हो जाती है. सलाम बहुत प्यारी चीज है, पैगम्बर साहब ने कहा "सलाम को आम करो और सलामती के साथ जन्नत (स्वर्ग) में दाखिल हो जाओ.
एक दूसरे को सलाम करना चाहीए, सलाम को करने और उसका जवाब देने को बढ़ावा देना चाहिए. सलाम से आपस में मोहब्बत भी बढ़ती है, अल्लाह की रहमत मिलती है, अल्लाह की तरफ से हम को शांति मिलती है, बरकत होती है और अगर कोई आपको सलाम करता है तो आप उसके सलाम का जवाब देकर अपने लिए 30 नेकिया जमा कर सकते हैं. ईश्वर (अल्लाह) की रहमत का, उसकी बरकत का, और उसकी तरफ से हमें शांति, अमन और सुकुन मिले इसका अपने आपको उम्मीदवार बना सकते हैं.
सलाम के सामाजिक फ़ायदे
सलाम के कई सामाजिक फ़ायदे है, बंदा अल्लाह से क़रीब हो जाता है, बुराइयाँ दूर होती हैं, (अदावते) दुश्मनियां दूर होती है, दिलों में जगह बनती है, दिलो में मुहब्बत बसती है, आपस का गुस्सा भी दूर हो जाता है और सबसे बढ़कर घमंड काम होकर दीनता का जज्बा पैदा होता है.
जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से मिले तो जज्बात, अहसासात, खुशी और मसर्रत का तबादला करें। इसका वाहिद तरिका यह है कि एक दूसरे के लिए आफ़ियत और सलामती की दुआ करें एक अस्सलाम वालेकुम कहे तो दूसरा वालेकुम अस्सलाम। सलाम प्यार मोहब्बत को बढ़ाने में और आपसी तालुकात को बढ़ानेका बेहतरीन जरिया है.
कुराने पाक में अल्लाह ने फरमाया के जब तुम से मिलने वह लोग आए जो हमारी आयात पर ईमान लाए है तो तुम उन्हें अस्सलाम वालेकुम कहिए.
पैगंबर साहब ने लोगोंको शिक्षा दी के सलाम करनेमे पहल करो, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, "अल्लाह का सबसे करीबी बंदा वह है जो सलाम करनेमे पहल करता है।
पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) किसी कारन रात में घर देर से आते तो प्रवेश करते समय इस तरह से सलाम करते के जो जाग रहा हो वह उसे सुन ले और जो सो रहा हो उसकी नींद खराब न हो.
पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उन पर हो) ने कहा: "तीन लोग हैं जिनके लिए अल्लाह उनके जीवन का गारंटर (जामिन) होगा और स्वर्ग उनका निवास स्थान होगा। एक वह शख्स जो सलाम में पहल करता है, दूसरा वह जो नमाज, जमात के साथ (सामूहिक) अदा करता है, और तीसरा वह जो अल्लाह के रास्ते में जद्दोजहद (जिहाद) करता है.
निःशुल्क pdf डाउनलोड Free pdf Downloads
Click to Download
पैगम्बर मुहम्मद स. और भारतीय धर्मग्रंथ
लेखक: डॉ. एम् ए श्रीवास्तव
(ऐतिहासिक शोध)
लेखक: वेदप्रकाश उपाध्याय
लेखक: मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी
(हदीस संग्रह)
संकलन: अब्दुर्रब करीमी