2023 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस | Woman in Islam

आज ८मार्च है इस दिन सारी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस international women's day मनाया जाता है. 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्या है? और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य क्या है? और साथ ही साथ इस्लाम में महिला का क्या स्थान है? क़ुरआन की महिलाओंको के बारे में क्या शिक्षा है?  और कुछ मुस्लिम महिलाओंके बारेमे जानने की कोशिश करेंगे.

International Women's Day


8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है?

इतिहास में पहली बार महिलाओने अपने अधिकार केलिए हड़ताल की वह दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 8 मार्च का दिन था. इसलिए  8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दिन के तौरपर मनाया जाता है.  

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले २८ फ़रवरी १९०९ को मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।

१९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखिरी इतवार २३ फ़रवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

प्रसिद्ध जर्मन एक्टिविस्ट क्लारा ज़ेटकिन के जोरदार प्रयासों के बदौलत इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस ने साल 1910 में महिला दिवस के अंतर्राष्ट्रीय स्‍वरूप और इस दिन पब्लिक हॉलीडे को सहमति दी। इसके फलस्‍वरूप 19 मार्च, 1911 को पहला IWD ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और जर्मनी में आयोजित किया गया। हालांकि महिला दिवस की तारीख को साल 1921 में बदलकर 8 मार्च कर दिया गया। तब से महिला दिवस पूरी दुनिया में 8 मार्च को ही मनाया जाता है।  (विकिपीडिया)

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य क्या है?

समाज में महिलाओं को समानता का दर्जा प्राप्त करवाना यह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य है. इस दिन लोगों को महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरुक करने की कोशिश की जाती है. जागरुक करने केलिए अलग लग कार्यक्रम और कई कैंपेन आयोजित किए जाते हैं. जीसमे महिलाओंके साथ किसी भी क्षेत्र में भेदभाव न किया जाए और उन्हें उनके किसी भी अधिकार से वंचित न किया जाए इस  की शिक्षा दी जाती है. 

Muslim Mahila


क़ुरान में महिला का स्थान  Woman in Islam

हम देखते है के हमारे समाज मे एक बहुत बड़ी गलत धारणा है कि मुस्लिम समाज में महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जाता है, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. अल्लाह कुरान में कहता है,

"... महिलाओं को पुरुषों के समान, परिचित पद्धति के अनुसार समान अधिकार हैं।"

- कुरान (2:228)

"एक ईमानदार आदमी और एक ईमानदार महिला एक दूसरे के साथी होते हैं।"

- कुरान (9:71)

एक अन्य स्थान पर काही गया है,

"ऐ लोगों, अपने रब से डरो, जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी जान से तुम्हें अपनी बीवी बनाया..."

- कुरान (4:1)

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इसका मतलब यह है कि स्त्री और पुरुष की उत्पत्ति एक ही जीव से हुई है और अब विज्ञान भी यही मानता है. अतः दोनों का मूल एक ही है. समानता की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है कि सामाजिक रूप से स्त्री और पुरुष एक ही शरीर के दो अंग हैं.

शादी से पहले दूल्हे द्वारा दुल्हन को एक बड़ी राशि दी जाती है, ताकि जो महिला अपने पति को छोड़ दे, उसके पास शेष जीवन के लिए कम से कम एक निश्चित राशि हो. उस रकम पर सिर्फ उसी का अधिकार है. इसे 'माहेर' कहा जाता है. राशि स्वयं महिला द्वारा निर्धारित की जाती है.

तलाक

अगर दोनो के विवहिक जीवनमे अक्सर झगड़े होते रहते हैं तो ऐसी स्थिती मे , मध्यस्थता के जरिए मामले को सुलझाएं, नहीं तो हर दिन लड़ने के बजाय आपको अलग होने और अपने लिए एक अलग दुनिया बनाने की आजादी दी गई है. इस प्रक्रिया को तलाक कहा जाता है. लेकिन कुछ लोगों द्वारा इसके गलत इस्तेमाल के कारण इसके बारे में कई भ्रांतियां हैं.

दरअसल कुरान के मुताबिक तलाक देने के बाद औरत तीन माहवारी (करीब चार महीने दस दिन) तक मर्द के घर में रहती है और उसे घर से बाहर नहीं निकाला जाता है. इस बीच, आदमी उसके लिए भोजन और आवास प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है. इस बीच अगर सुलह की जरूरत है तो उसके लिए भी मौका है.

हलाला

हलाला को लेकर भी कई भ्रांतियां हैं. इद्दत (चार महीने और दस दिन) के बाद कभी भी एक तलाकशुदा महिला का कानूनी रूप से अपनी मर्जी से, अपनी पसंद के पुरुष से विवाह किया जाता है, और शादी के बाद दुर्भाग्य से दूसरे पति की मृत्यु हो जाती है या वह भी उसे तलाक दे देता है, ऐसी हालत मे इद्दत की अवधि के समाप्ति के बाद वाह महिला अपने पहले पति से दोबारा शादी कर सकती है. यदि वह अपने पूर्व पति से अपनी मर्जी और पसंद से दोबारा शादी करती है, तो वह शादी हलाला कहलाती है. 

इस प्रकार हलाला एक तलाकशुदा महिला को दिया गया पुनर्विवाह का अधिकार है, यह एक बहुत ही प्रगतिशील प्रथा है। लेकिन कुछ अज्ञानी मुसलमान इसका फायदा उठाते हैं और इसका दुरुपयोग करते हैं और तलाक के बाद उससे दोबारा शादी करने का फैसला करते हैं और उसे दूसरी बार तलाक देकर अपने पहले पति से दोबारा शादी करते हैं, यह हलाला नहीं है बल्कि इस्लामी विचारक मुहम्मद अली ने इसे हराम कहा है, इस्लाम में यह पहले से ही हराम है. .

इस्लाम के अनुसार, महिलाओं के विवाह के बाद, उनके पिता का नाम और उपनाम बरकरार रहता है, उनके पति का नहीं, पहले की तरह, यह नहीं बदला जाता है. उदाहरण के लिए बेनजीर भुट्टो अंत तक बेनजीर भुट्टो रही, वे बेनजीर जरदारी नहीं बनी.

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पैगम्बर मोहम्मद साहब कि पत्नी

पैगंबर ने अपनी पत्नी को इतनी आजादी दी कि एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी आयशा सिद्दीका से कहा, "आयशा, घर की छत पर खड़े हो जाओ और मुझे वह सब कुछ बताओ जो तुम मेरे बारे में जानती हो." इतनी आजादी आज का आधुनिक पति भी अपनी पत्नी को नहीं देगा कि वह उसके  बारे में सोशल मीडिया पर जो कुछ भी जानती है वह डाल दे.

दुनिया का पहला लड़कियों का स्कूल

पैगम्बर मोहम्मद साहब ने दुनिया का पहला लड़कियों का स्कूल शुरू किया. उनकी पत्नी आयशा सिद्दीका दुनिया की पहली महिला शिक्षिका हैं. उनकी सभी पत्नियों के घरों को उनकी पत्नियों के नाम से 'हजरत आयशा का घर', 'हजरत सौदा का घर' के नाम से जाना जाता है. इसलिए महिलाओं के नाम पर घर, महल आदि बनाने की परंपरा मुसलमानों ने दुनिया में शुरू की है. 'मुमताज महल', 'बीबी का मकबरा', 'चांदबीबी महल' इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. पैगम्बर मोहम्मद साहब सबसे पहले महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा देने वाले थे. इसीलिए आज मुस्लिम समाज में कन्या भ्रूण हत्या, दहेज नगण्य है.


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