हिजाब बुरका नकाब का अर्थ और इतिहास | World Hijab Day 2024

सन 2013 में बांग्लादेशी-अमेरिकी Bangladeshi-American नज़मा खान ने विश्व हिजाब दिवस World Hijab Day की शुरुआत "धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने" की आशा से की थी. यह एक वार्षिक कार्यक्रम है जो हर साल 1 फरवरी को दुनिया भर के 140 देशों में आयोजित होता है. इसे स्थापित करने का उद्देश्य सभी धर्मों और पृष्ठभूमि की महिलाओं को एक दिन के लिए हिजाब पहनने और अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित करना और हिजाब क्यों पहना जाता है, इसके बारे में शिक्षित करना और जागरूकता फैलाना यह है. इसी तरह हिजाब पहनने को सामान्य और आम करना यह भी उसके उद्देश्य में शामिल है. 


World Hijab Day - विश्व हिजाब दिवस


सन 2017 में न्यूयॉर्क राज्य ने विश्व हिजाब दिवस को मान्यता दी, और उस दिन को चिह्नित करने वाला एक कार्यक्रम हाउस ऑफ कॉमन्स में आयोजित किया गया था, जिसमें थेरेसा मे Theresa May (ब्रिटेन की पूर्व प्रधान मंत्री) ने भाग लिया था. आज 1 फरवरी विश्व हिजाब दिवस World Hijab Day के अवसर पर हम हिजाब, नकाब और  बुरका किसे कहते है? यह क्यों पहना जाता है? इस का इतिहास क्या है? क्या मुस्लिम धर्म की महिलाओंके अलावा अन्य धर्म की महिला भी हिजाब का इस्तेमाल करती है? इन सारे सवालोंका जवाब जानने की कोशिश करेंगे. 


हिजाब का अर्थ

हिजाब حجاب मुलता: अरबी शब्द है. इसका अर्थ  "कवर" या "बाधा" है. मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपने बालों को ढकने के लिए पहने जाने वाले परिधान को हिजाब कहते है. 


नकाब का अर्थ   

नकाब शब्द अरबी शब्द "नकाबा" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "ढकना" या "पर्दा करना" है. मुस्लिम महिलाओं द्वारा शील के रूप में पहने जाने वाले एक परिधान को नकाब कहते है. यह सिर को ढकने वाला एक प्रकार है जो पूरे चेहरे को ढक देता है, केवल आंखें दिखाई देती हैं. 


Nikab - नकाब


बुरका किसे कहते है

मुस्लिम महिला द्वारा पहने जानेवाले एक ढीले और ढका हुआ बाहरी परिधान को बुर्का कहते है. यह पुरे शरीर को चेहरे समेत ढक देता है, इसमें चेहरे के सामने जालीदार कपडा लटका होता है जिससे आर-पार देखा जा सकता है.


हिजाब का इतिहास

आम तौरपर लोग समझते है के हिजाब की शुरुआत पैगम्बर मुहम्मद साहब ने की. लेकिन इतिहास बताता है के पर्दा या घूंघट का चलन पैगम्बर मुहम्मद साहब के पहलेसे था. खासकर अरब के कस्बों की महिलाएं पहलेसेही पर्दा करती थीं. उपलब्ध साक्ष्यों के पता चलता है कि ईसा मसीह के ढाई हजार साल पहले की मूर्तियों में भी घूंघट की छाप दिखती है.


ये भी पढ़ें:  इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन है?


स्टेटस सिंबल के तौर पर ग्रीक, मेसोपोटामिया, फारसी और  बीजान्टिन साम्राज्यों में उच्च वर्ग की घूंघट रखती थीं. उनके यहाँ कौन सी महिलाएं घूंघट रखेंगी और कौन नहीं इसके लिए कानून बने थे. मेसोपोटामिया और असीरिया इसके उदहारण है. वेश्याओं और दासियों को घुंगट करने पर कठोर दंड दिया जाता था उन्हें घूंघट करने की मनाही थी.


इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों में पर्दा या घुंगट की प्रथा


सिर और  चेहरा ढकने की प्रथाएँ भारत में अन्य धर्मों में भी विभिन्न रूपों में मौजूद हैं. कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:

सिख धर्म: सिख महिलाएं अपने बालों को ढकने के लिए हेडस्कार्फ़ या पगड़ी पहन सकती हैं, जिसे "दस्तार" कहा जाता है. दस्तार सिख मूल्यों के प्रति उनकी आस्था और प्रतिबद्धता की एक दृश्य अभिव्यक्ति के रूप में कार्य करता है.


ईसाई धर्म: भारत में कुछ ईसाई संप्रदायों, विशेष रूप से कैथोलिक धर्म में कुछ ऐसे संप्रदाय या समुदाय हैं जहां ननें अपने समर्पण और विनम्रता के प्रतीक के रूप में अपने सिर को घूंघट से ढकती हैं.


जैन धर्म: जैन महिलाएं अपने धार्मिक पालन के प्रतीक के रूप में पर्दा पहन सकती हैं या अपना सिर ढक सकती हैं. हालाँकि, यह प्रथा जैन धर्म के विभिन्न संप्रदायों और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं में भिन्न है.


Hijab - Ghunghat


हिंदू धर्म: हालांकि हिंदू धर्म में सिर ढंकना या घूंघट पहनना अनिवार्य नहीं है, कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से पुरानी पीढ़ियों के बीच, महिलाएं सिर को दुपट्टे या साड़ी के पल्लू से ढकती हैं. इसी तरह अपने चेहरे को भी साड़ी के पल्लू से ढकती हैं.


क्या कुरान में हिजाब पहनना अनिवार्य है?

कुरान में हिजाब का उल्लेख सूरह नंबर 24. अन-नूर के 31 वे निम्नलिखित आयत में मिलता है. इसका हिंदी अनुवाद उस प्रकार है, "और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों (वक्षस्थलों) पर अपने दुपट्टे डाले रहें और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों। और स्त्रियाँ अपने पाँव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए। ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।"


इसी प्रकार एक दूसरी जगह सूरह नंबर  33 अल-अहज़ाब के 59 वे निम्नलिखित आयत में मिलता है. इसका हिंदी अनुवाद उस प्रकार है, "ऐ नबी! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें। इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि वे पहचान ली जाएँ और सताई न जाएँ। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।"


सफ़ियाह बिन्त शायबा से वर्णित है कि 'आयशा (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) कहा करती थी: जब ये शब्द प्रकट हुए - "और जुयूबिहिन्ना (अर्थात् उनके शरीर, चेहरे, गर्दन और छाती) पर अपना पर्दा खींच दो" - उन्होंने अपने इज़ार (एक प्रकार का वस्त्र) ले लिया और उन्हें किनारों से फाड़ दिया और उनसे अपना चेहरा ढक लिया। अल-बुखारी, 4481 द्वारा वर्णित।



Old Woman Hijab - बूढी औरत का हिजाब


ऐसी औरतें जो बूढी हो गई है उन केलिए क़ुरआन में सूरह नंबर 24. अन-नूर की 60 नंबर की आयत में आदेश दिया गया है के, 

"जो स्त्रियाँ युवावस्था से गुज़रकर बैठ चुकी हों, जिन्हें विवाह की आशा न रह गई हो, उनपर कोई दोष नहीं कि वे अपने कपड़े (चादरें) उतारकर रख दें जबकि वे श्रृंगार का प्रदर्शन करनेवाली न हों। फिर भी वे इससे बचें तो उनके लिए अधिक अच्छा है। अल्लाह भली-भाँति सुनता, जानता है।"


क्या परदा या हिजाब का आदेश सिर्फ महिलाओं केलिए है?

इस्लाम धर्म की शिक्षाओंमे पर्दा या शीलवान बनाने का आदेश सिर्फ महिलाओं केलिए नहीं है यह आदेश पुरुषों केलिए भी है, कुरान में पुरुषोंको हिजाब का उल्लेख सूरह नंबर 24. अन-नूर के 30 वे निम्नलिखित आयत में इस तरह है,

"ईमानवाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यही उनके लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह को उसकी पूरी ख़बर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं।" 


परदा के बारेमे पैगम्बर मुहम्मद साहब की शिक्षाएं


'उरवाह (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) ने बताया कि 'आयशा (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) ने कहा: अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फज्र की नमाज़ पढ़ते थे और ईमान वाली महिलाएँ अपने लबादे में लिपटी हुई उनके साथ (प्रार्थना) में भाग लेती थीं, फिर वे वापस उनके घर चली जाती थीं। और कोई उन्हें पहचान नहीं पाता था। (अल-बुखारी द्वारा वर्णित, 365; मुस्लिम, 645)


Hijab Girl


अस्मा बिन्त अबी बक्र (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) ने कहा: हम पुरुषों के सामने अपना चेहरा ढकते थे। (इब्न ख़ुजैमाह द्वारा वर्णित, 4/203; अल-हकीम, 1/624)


ये भी पढ़ें:  पैगंबर मुहम्मद (स.) "दया का सागर"


इन हदीसों से हमें प्रारंभिक वक्त की मुस्लिम महिलाओं के शालीन कपड़े पहनने की प्रथा कैसी थी इस की ओर इशारा करती हैं ताकि उनका फिगर उजागर न हो. वे अपने पहनावे में इस हद तक शालीनता बनाए रखथी थी  कि आसपास के लोग पहचान ही नहीं पाते थे कि वे कौन हैं.


इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं के लिए कपड़ों और व्यवहार में विनम्रता बरतने पर बहुत जोर दिया गया है, वहीं मुस्लिम पुरुषों को गैर-महरम (वह महलाएं जिनसे शादी की अनुमति है) महिलाओं पर अपनी नजरें गड़ाने से बचने की हिदायत दी गई है।


अब्दुल्ला बिन मसूद ने बताया: "हम अल्लाह के दूत (पैगम्बर मुहम्मद) के साथ गए, जबकि हम युवा थे, जिनके पास कुछ भी नहीं था। उन्होंने कहा: 'हे नवयुवकों! आपको शादी कर लेनी चाहिए, क्योंकि इससे नज़रें नीची करने और गुप्तांगों की सुरक्षा करने में मदद मिलती है। तुम में से जो कोई विवाह करने में समर्थ नहीं है, वह उपवास करे, क्योंकि उपवास करने से उसकी कामवासना घट जाएगी। [जामी अत-तिर्मिधि]


हिजाब पहनने के लाभ क्या है?

हिजाब पहनने के अनेक लाभ है, उनमेसे कुछ निम्न लिखित फायदे है जैसे,


धार्मिक पालन:  हिजाब को कई मुस्लिम महिलाओं के लिए एक धार्मिक दायित्व है वह उसे  उनके आध्यात्मिक कर्तव्यों को पूरा करने के साधन के रूप में देखती है.


शील:  हिजाब बालों, गर्दन, कंधों और छाती को ढककर शील को बनाए रखने और बढ़ावा देने में मदद करता है, जो व्यक्ति विनम्रता को महत्व देते हैं, उनके लिए यह गरिमा की भावना और अवांछित ध्यान से सुरक्षा प्रदान करता है.


आस्था की अभिव्यक्ति: हिजाब पहनने से मुस्लिम महिलाओं को सार्वजनिक रूप से मुसलमानों के रूप में अपनी आस्था और पहचान व्यक्त करने की अनुमति मिलती है. यह इस्लाम, सांस्कृतिक विरासत और एक विशिष्ट समुदाय से संबंधित होने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के स्पष्ट संकेत के रूप में काम करता है.


आंतरिक चरित्र पर ध्यान : अपनी शारीरिक उपस्थिति को कवर करके, हिजाब पहनने वाली महिलाएं अक्सर बाहरी सुंदरता के विपरीत, अपने आंतरिक गुणों, जैसे बुद्धि, व्यक्तित्व और चरित्र के महत्व पर जोर देती हैं. यह शारीरिक बनावट के आधार पर सतही निर्णयों से ध्यान हटाने में मदद करता है.


सम्मान को प्रोत्साहित करता है:  हिजाब दूसरों को महिलाओं की शारीरिक बनावट के बजाय उनकी बुद्धि, क्षमताओं और चरित्र के आधार पर व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह इस विचार पर जोर देता है कि महिलाओं को केवल उनके बाहरी दिखावे के बजाय उनके आंतरिक गुणों के आधार पर परखा और सम्मान दिया जाना चाहिए.


वस्तुकरण से सुरक्षा: कुछ मुस्लिम महिलाएं स्वयं को वस्तुकरण या यौनीकरण से बचाने के साधन के रूप में हिजाब पहनती हैं, उनका मानना है कि यह उन्हें नियंत्रित करने की अनुमति देता है कि कौन उनके शरीर को और किन परिस्थितियों में देखता है.


हिजाब पहनने का निर्णय एक व्यक्तिगत पसंद है जो धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक पहचान, व्यक्तिगत विश्वास और व्यक्तिगत परिस्थितियों जैसे विभिन्न कारणोंसे प्रभावित होता है.


आशा है आपको "हिजाब,  बुरका,  नकाब, का अर्थ और इतिहास" यह लेख पसंद आया  होगा. और इसे किन किन धर्मो की महिलाऐं अपने आचरण में लती है और इसके क्या लाभ है यह भी आप कान गए होंगे. आपको यह जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालोमे शेयर करे. धन्यवाद


निःशुल्क pdf डाउनलोड  Free pdf Downloads

Click to Download


पैगम्बर मुहम्मद स. और भारतीय धर्मग्रंथ  

लेखक: डॉ. एम् ए श्रीवास्तव

 

नराशंस और अंतिम ऋषि

(ऐतिहासिक शोध)

लेखक: वेदप्रकाश उपाध्याय


जीवनी हजरत मुहम्मद स. 

लेखक: मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी


पैगम्बर (स.) की बातें 

(हदीस संग्रह)

संकलन: अब्दुर्रब करीमी 


कुरान हिंदी में





Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.